शनिवार, 26 सितंबर 2009

सर्वेसंतु निरामया:।



भुवाली, 15 सितम्बर 2009


नैनीताल के पास भुवाली में हूँ. भुवाली जो अपने प्राकृतिक सौन्दर्य से ज्यादा टीबी सेनोटेरियम के लिये जाना
जाता है. इसकी ख़्याति इससे भी है कि जवाहर लाल नेहरू की पत्नी कमला नेहरू ने यहाँ इलाज कराया था. पर टीबी उन दिनों एक जान लेवा बीमारी थी और भुवाली जैसे स्थान बस बीमारों की अंतिम यात्रा थोडी कम कष्टप्रद बना देते थे. पिछ्ली सदी में विज्ञान ने टीबी का तो इलाज ढूंढ लिया और आज किसी को भुवाली नहीं जाना होता, डाकिया उसकी दवाई घर पहँचा देता है.


लेकिन, दुनिया में बीमारियों की कमी नहीं, एक से बढ्कर एक मारक. हर दिन एक नयी बीमारी से सामना होता है, कभी चिंपेंजियों के जरिये, कभी मुर्गे के और कभी सुअर के. फिर सडक और अन्य हादसे. प्रजनन आदि से संबन्धित कष्ट भी कितनी स्त्रियों की जान ले लेते हैं. और आज की कुंठा भरी दुनियां में आत्मघात भी एक बडी बीमारी है.


बुद्ध ने ठीक ही कहा था, दुख हैं !


विज्ञान की इतनी तरक्की के उपरांत भी तीसरी दुनिया के देशों में स्वास्थ सेवायें खुद बीमार हैं. और भारत तो तीसरी दुनियां का सिरमौर है. एक तो हमारे देश में सार्वजनिक अस्पताल बस बडे बडे शहरों तक सीमित हैं फिर उनका संचालन ऐसा कि आदमी को लगता है कि बीमारी का इलाज कराते कराते एक नयी बीमारी साथ न होले. ग्रामीण क्षेत्रों के लिये तो उनके घर से अस्पताल की दूरी ही जान लेवा हो जाती है. आज भी कितनी प्रसूतायें नया जीवन देते देते अपना जीवन खो देती हैं.






हल्द्वानी के आस पास घूमते घूमते एक एम्बूलेंस जैसी गाडी पर बार बार नजर जाती है. साथ में शलभ हैं, पूछा तो पता चला कि ये उत्तराखंड सरकार की अल्ट्रा माडर्न एंबूलेंस सेवा है जिसको 108 सेवा कहा जाता है. 108 इसलिये कि ये टोल फ्री टेलीफोन नम्बर है जिस पर लोग परेशानी में फोन करते हैं और 15-20 मिनट में एंबूलेंस उनके पास पहुँच जाती है. ये बीमार को नजदीकी अस्पताल ले जाती है. अगर समस्या गंभीर नहीं तो ये एंबुलेंस के साथ चलता फिरता अस्पताल भी है. गंभीर बीमारों को अस्पताल पहुँचाने के अलावा, इस एंबूलेंस ने मेटर्निटी अस्पताल का काम बखूबी निभाया है, हजारों गर्भवती माताओं को अस्पताल पहुँचा कर या सैंकडो मामलों में चलते चलते ही सफल व सुरक्षित जनन करा कर. क्या खूब ! ऐसी सेवा तो बडे बडे शहरों में भी नहीं.


बाद में पता चला कि यह सेवा आंध्र, गुजरात, गोआ और मेघालय में भी है और कुछ अन्य राज्य इसे चालू करने की योजना बना रहे हैं. ये भी कि इस प्रकार की सेवायें तो सब राज्य दे सकते हैं, नेशनल रूरल हैल्थ मिशन के तहत.


सार यह कि जब अच्छी स्वास्थ सेवाओं की बात हो तो केवल विदेश ही उदाहरण नहीं, हमारे देश में भी नखलिस्तान हैं. लेकिन बहुत से राज्यों की समस्या उनका गैर उत्पादक कार्यों में व्यस्त रहना भी है. और सही तो यह कि इच्छा का आभाव भी है. पिछ्ले दिनों ये भी पता चला कि रूरल हैल्थ इंश्योरेंस कार्यक्रमों के तहत ग्रामीण गरीबों को साल में तीस हजार तक के मुफ्त इलाज की व्यवस्था है, लेकिन ऐसे ग्रामीण नहीं मिले जिन तक ये सुविधा पहुँची हो.




तो सर्वेसंतु निरामया: का ध्येय कब पूरा होगा ? बुद्ध ने ये भी कहा था कि दुख का निदान भी है. आवश्यकता है बस सभी के वह करने की जो कुछ करते हैं.


10 टिप्‍पणियां:

  1. चिकित्सा क्षेत्र में भारत अग्रणि है. अमेरिका से भी चिकित्सा के लिए लोग भारत का रुख कर रहे हैं. अच्छा आलेख.

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  2. इसमें कोई संदेह नहीं कि भारत चिकित्सा क्षेत्र में अग्रणि है. परंतु प्रश्न चिकित्सा के जन साधारण तक पहुँचने का है. यह लक्ष्य अभी दूर ही लगता है. आदर.

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  3. bahut accha alekh..ab to America, Canada se log Medical Tour mein jaa rahe hain..

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  4. बेशक गांव हों या शहर हमारे अस्पताल बीमार हैं और स्वास्थ्य सेवाएं पंगु लेकिन हम भी कम जिम्मेदार नहीं. चूहों और काक्रोच की तरह हमारी पॉपुलेशन बढ़ रही है. अस्पतालों में सुविधाओं से तीन गुना तेजी से भीड़ बढ़ जाती है. यूपी, बिहार के सरकारी अस्पतालों की ओपीडी में भीड़ का रेला देखिए, इन परिस्थितियों में बेहतर की अपेक्षा करना बेकार है. रही एंबुलेंस की बात तो इससे कही अधिक जरूरी है मदद के लिए बढ़ा आपका हाथ. रोड एक्सीडेंट्स मेंं आधी से अधिक डेथ एक्सेस ब्लीडिंग के कारण होती हैं. उन्हें समय पर चाहे एंबुलेंस पहुंचाए चाहे आप. वैसे जहां भी बेहतर सवास्थ्य सेवाएं हें उनसे हमे जरूर सीखना चाहिए.

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  5. सुन्दर चर्चा । बहुत सी जानकारी प्राप्त हुई ।

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  6. स्वास्थ तो सबका अधिकार है पर जब वह सुलभ न हो तो कैसा अधिकार.राजीव जी से सहमत हूँ कि जन के बढने की गति सुविधाओं के बढने की गति को मात दे देती है.

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  7. UP jaise rajyon ki swastha vyavastha par behatareen katax.

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  8. अच्छा आलेख. काश यह उन लोगों तक पहुँच पाये जिनके हाथ में व्यवस्था है.

    सुरेन्द्र सिरोही

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  9. जब तक जीवन है दुःख भी हैं..साये की तरह..उत्तराखंड की नयी मोबाइल स्वास्थ्य सेवा के बारे मे जान कर अच्छा लगा..मगर जनसाधारण से जुड़ी किसी भी योजना के कन्सेप्ट से भी ज्यादा जरूरी उसका सही क्रियान्वयन होना है..और ग्रामीण स्वास्थ्य से जुड़ी यह अनूठी परियोजना किसी लाल फ़ीते के तले दम न तोड़ दे ऐसी कामना है..शेयर करने के लिये बधाई

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  10. सारा पंगा तो दु:ख निदान के मार्गों में ही है।
    एक ठो बुद्ध अउर चाहिए मार्गों को 'मार्गो' साबुन लगा कर चमकाने के लिए। बहौत गन्दगी हो गई हो इन पर...
    वैसे भी हम भारतीय मार्गों पर निपटना प्रथम राष्ट्रीय अधिकार मानते हैं।
    का करिएगा !

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