शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

आम और मोबाइल टावर

आम का एक बाग देखा तो रुक गया. याद आयी बचपन की वे गरमियां जो ऐसे ही बागों में गुजारीं थी, कच्चे पक्के आम खाते, कच्चा दूध पीते और पास बहती नहर में नहाते. तरह तरह कर्कश हॉर्न मुझे टाइम मशीन से वापस वर्तमान में ले आते हैं. फ्लैश बैक को केवल हॉर्न नहीं छेड़ते, माबाइल की घंटी भी बजती रहती है. इतनी कि पता ही नहीं चलता कि फोन मेरा है कि किसी और का. उसकी सर्वव्याप्तता आम के बाग में भी दिखती है. आम के फलों से लदे मनोहारी पेड़ से एक मोबाइल टावर छेड़ छाड़ कर रहा है.
आम अभी छोटे छोटे हैं, पकने में कुछ हफ्ते लग जायेंगे. यात्रा आगे जारी रखता हूँ.   

रविवार, 4 अप्रैल 2010

मौसम सूना सूना सा

मेरठ, 04.04.2010  
यात्रा पर हूँ. आम पर खूब बौर दिख रहा है. इतना कि आम की शानदार फसल की उम्मीद से मुंह में पानी आ रहा है. अमराई से कोयल की कुह कुह  सुनाई दे रही है. ये मौसम मुझे बड़ा अच्छा लगता है, थोड़ा सूनापन लिये पर आशा से भरपूर.



लेकिन, गर्मी की आहट तेजी से सुनायी दे रही है. समय से तेज और असर से भी. गेहूं पक गया है और खेतों में जैसे सोना बिखरा है. कहीं कहीं कटाई शुरु हो गयी है. पसीने में लथपथ किसान लगे हैं.


दूर सौंफ भी पक रही है और एक पलाश का पेड़ अकेला खड़ा है. कभी पूरे के पूरे जंगल थे पलाश के इस क्षेत्र में, कितना मनोरम लगता था परिदृश्य.