रविवार, 30 अगस्त 2009

कालिंदी कूल कदम्ब की डारन


26 व 27 अगस्त 09, मथुरा. मैं मथुरा में हूँ. ब्रज में हूँ.
श्रुति है कि कृष्ण युगों पूर्व मथुरा से पालायन कर द्वारिका चले गये. परंतु, ब्रज आज भी सांवरे रंग में डूबी है. कृष्ण क़ॆ बिना ब्रज, आत्मा के बिना शरीर जैसे है.
लेकिन कृष्ण क़ॆ रंग विविध हैं, बिल्कुल जीवन के रंगो की तरह. बिल्कुल दिन के प्रहरों की तरह. फाल्गुन में ये रंग भौतिक होते हैं. श्रंगार रस में भीगे लाल, नीले, पीले रंग और साथ में बरसाने की लाठियां. वहीं आजकल (भाद्रपद) में ये रंग दैविक व लौलिक रूप धर लेते है. प्रेम व भक्ति का रंग. ब्रज के मंदिर इन दिनों संगीत व नृत्य की रंगशाला लगते हैं. ब्रज लोकगीतों की मंत्रमुग्ध करने वाली स्वर लहरी कृष्ण-राधा और गोपियों के प्रेम को साक्षात कर भाव विभोर कर देती है.
लेकिन, ब्रजवासियों का एक रूप बहुत अनूठा है. कृष्ण यहाँ उनकी प्रेयसी राधा के सम्मुख गौण हो जाते हैं. ब्रजबासियों के हृदय की सम्राज्ञी तो राधा हैं. पूरे ब्रज में हर ओर जय श्री राधे की गूंज सुनाई देती है. चाहे किसी को अभिवादन करना हो या ईश्वर स्मरण, बस एक जय श्री राधे में सब कुछ समाहित है. संभवत: ब्रजवासी कृष्ण का उन्हें छोडकर द्वारिका जाना भुला नहीं पाये. जब कृष्ण नहीं थे तो राधा ही तो उनका संबल थी.
कौन थी राधा? कई विद्वान मानते हैं कि राधा एक कल्पना है. कवि और लेखकों की कल्पना. ब्रज की जीवन रेखा क्या है? यमुना. तो क्या कृष्ण की चिरप्रेयसी यमुना ही राधा है?
जय श्री राधे.

1 टिप्पणी:

  1. कृष्ण के ऐतिहासिक होने के कुछ प्रमाण हैं लेकिन राधा के नहीं। अवतारवाद के केन्द्र में मुख्यत: पुरुष ही रहा। भक्ति आन्दोलन के समय कवियों की करुणा का प्रवाह नारी की ओर भी हुआ और 'राधा और गोपियाँ' संतुलन के लिए लाई गईं। लालित्य और रस से युक्त भक्ति सरल, आकर्षक और मधुरा हो गई।

    "कृष्ण की चिर प्रेयसी यमुना ही राधा है।" अच्छी कही लेकिन राधा तो कंचन गौर वर्णी और यमुना साँवरी ! बात कैसे बने?

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