रविवार, 4 अक्तूबर 2009

कुछ भी तो नहीं होता, और दिन हो जाता है कल


02 अक्टूबर 2009 : गांधीजी का जन्म हो या मेरा एक निराशा ही घेरती है, क्योंकि इतने सालों में कुछ भी बदलता नहीं. ऐसे ही क्षण में लिखा था...

कुछ भी तो नहीं होता, और दिन हो जाता है कल
सुबह होती है यूँ ही अलसाई सी और तभी आ जाती है
शाम भी दिन गिनता हूँ तो तीस हो जाते हैं और गिनता हूँ महिने तो बारह
साल गिनता हूँ तो लगता है कि कम है एक उम्र भी
यूँ ही कटता है जीवन का हर पल
कुछ भी तो नहीं होता, और दिन हो जाता है कल




रोज वही सब कुछ
स्कूल बसों के हार्न, आफिस जाने वालों का क्रंदन
फिर भी न जाने क्यों लगता है क्या रुक जायेगा जीवन का स्पंदन
इतने लोग हर ओर, सबका अपना अपना शोर
सुने कैसे कोई मेरा कोलाहल
कुछ भी तो नहीं होता, और दिन हो जाता है कल




मैं जीवन को जीता हूँ या जीवन जीता है मुझको
किससे पूंछू अपने जैसा ही पाता हूँ सबको
सोचा करता हूँ, बस कल से परिवर्तन होगा
पर हर रोज सुबह
घिर आते हैं आशंकाओं के बादल
कुछ भी तो नहीं होता, और दिन हो जाता है कल


प्रतिदिन करता हूँ अपने से
सपनो को सच करने के वादे
ऐसे ही बीत गये जीवन के दिन आधे ना जाने क्यूँ करता हूँ अपने से ये छ्ल
कुछ भी तो नहीं होता, और दिन हो जाता है कल

सोचा कितनी बार अब और नहीं रहने दुंगा मैं ऐसा संसार पर ना जाने क्यूँ
सोते में अपनी करवट भी नहीं सका बदल
कुछ भी तो नहीं होता, और दिन हो जाता है कल
मैं रुका भी नहीं, कहीं पहुँचा भी नहीं
न जाने कैसे रहा था मैं चल
कुछ भी तो नहीं होता, और दिन हो जाता है कल

8 टिप्‍पणियां:

  1. आज यदि गांधी होते तो 140 साल के होते, अर्थात दुबारा सठिया गये होते. लेकिन देश में कितना कुछ है जो बदलने का नाम ही नहीं लेते.

    अच्छा काव्यात्मक आलेख.

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  2. दिन का 'कल' हो जाना अपने आप में बहुत बड़ा 'होना' है।

    पंक्तियों को ज्यामिति का सौन्दर्य दें। सुन्दर कविता है। आँखों को भी दर्शनीय लगनी चाहिए।
    इतने कम समय में इतने पाठक !अद्भुत शक्ति है आप के लेखन में।

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  3. इतनी निराशा. उठो और सोच लो कि बदल देनी है दुनियाँ. चित्र की चिडियों की तरह जो कंटीले तारो पर बैठ कर भी पंख खोल उडने को तैयार है.

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  4. मैं जीवन को जीता हूँ या जीवन जीता है मुझको
    किससे पूंछू अपने जैसा ही पाता हूँ सबको
    सोचा करता हूँ, बस कल से परिवर्तन होगा

    sundar!!!!

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  5. मैं जीवन को जीता हूँ या जीवन जीता है मुझको
    किससे पूंछू अपने जैसा ही पाता हूँ सबको
    सोचा करता हूँ, बस कल से परिवर्तन होगा
    पर हर रोज सुबह
    घिर आते हैं आशंकाओं के बादल
    कुछ भी तो नहीं होता, और दिन हो जाता है कल
    बहुत सुन्दर बात कही है अच्छी अभिव्यक्ति ....

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  6. आपकी प्रेरणाप्रद टिप्पणी के बहाने आपको पढने का सुअवसर मिला. चिंतन की गहरायी है आप में.
    सोचा करता हूँ, बस कल से परिवर्तन होगा
    पर हर रोज सुबह
    घिर आते हैं आशंकाओं के बादल
    बहुत अच्छी पंक्तियां हैं.
    उम्मीद है आगे भी मोडों पर मुलाकात होती रहेगी.

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  7. Aap schte to hain , pareshan hote to hain,
    log to zindagi bhar khate-pagurate hee bita dete hain aur janwaron see zindagi jati hai dhal

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