गया 11.10.09
जब भी पटना आया मन हुआ कि गया जाकर बुद्ध से मिल लूं.
एक बार कोशिश की तो कोई बाधा आई और मैं पहुंच गया, वैशाली. वही वैशाली जो प्राचीनतम गणराज्य था. लिच्छवियों का. नगरवधु से बौद्धभिक्षुणी बनी आम्रपाली का।
बौद्ध धर्म के लिये तो वैशाली विशेष है ही लेकिन मेरे विचार से उससे जुडी एक खास बात पूरे समाज की दृष्टि से अति विशेष है. बुद्ध संघ में नारियों के प्रवेश के पक्षधर नहीं थे और यह वैशाली ही था जहाँ बुद्ध झुक गये और नारी को संघ में स्थान मिला. नारी पुरुष से हीन नहीं, उसकी कमजोरी भी नहीं, वह उनके साथ मिल कर संघ को चला सकती है. वैशाली में बुद्ध को ढूंढा मिले नहीं, आम्रपाली भी नहीं मिली. सच तो यह है कि वैशाली ही नहीं मिला. पूरा क्षेत्र वैशाली के वैभव की छाया भी नहीं है. निर्धनता सब ओर दिख रही थी. कारण ? मुझे तो लगता है इसके पीछे केवल धन का आभाव नहीं, इच्छा का आभाव भी है. एक छोटा सा उदाहरण, कोल्हुआ, वैशाली के में वह स्थान जहाँ बुद्ध ने लम्बा समय बिताया, कई चमत्कार किये और अपना अंतिम उपदेश दिया. सच यह कि वैशाली की पहचान एक सिंह वाली अशोक की लाट भी यहाँ है. पर जब वैशाली जनपद बना तो कोल्हुआ को मुजफ्फरपुर में छोड दिया. भावशून्य सीमांकन. यही भावशून्यता विकास के लिये भी है.
कुछ दिन बाद फिर एक अवसर आया तो फिर कुछ अडचन आयी और मैं गया के स्थान पर नालंदा जा पहुँचा. नालंदा, शायद दुनियां का सबसे पुराना विश्वविद्यालय जहाँ के द्वारपाल भी द्वार पंडित कहाते थे और प्रवेश के इच्छुक विद्यार्थियों का पहला टेस्ट ले लेते थे. बख्तियार खिलजी ने इसे 1193 में जला के खाक कर दिया. पुस्तकालय के खंडहरों में आग के निसान देखे तो दु:ख हुआ. एक धर्मांध के कारण विद्या का एक श्रेष्ठ मंदिर नष्ट हो गया. वैशाली की तरह यहाँ भी जब ज्ञान तलाशा तो चारो ओर अशिक्षा ही अशिक्षा दिखी.
आज एक बार फिर अवसर मिला, गया जाने का. रास्ते में दीवारों पर आनंद मार्ग अमर रहे के नारे दिखे तो पता चला कि हम नक्सलवाद प्रभावित क्षेत्र से गुजर रहे हैं. जहांनाबाद निकट आ रहा था, तभी सडक पर जाम दिखा. किसी के अपहरण के विरोध में. जाम इतना अधिक कि आगे बढना असंभव दिखा. बुद्ध के ज्ञानक्षेत्र में हिंसा एकमात्र विकल्प रह गया है ? लगा इस बार भी बुद्ध से मुलाकात नहीं होगी. लौट की सोच ही रहे थे कि जाम के उस पार तक पैदल जाकर दूसरे वाहन से गया जाने की योजना बनी और अंतत: हम गया में हैं. नैरंजना नदी के किनारे किनारे देखा एक बालू का विस्तार. बिना पानी की नदी या अंत:सलिला. मुझे लगा क्या यह नदी की मौत से पहले की स्थिति है? क्या सरस्वती भी ऐसे ही विलुप्त हो गयी?
फिर उस बोधिवृक्ष के नीचे पहुँचे जिसके नीचे बैठकर बुद्ध को ज्ञान मिला. थोडी देर बैठा और ध्यान लगाया. लौटने लगा तो सोचा बोधिवृक्ष का एक पत्ता ले चलूं. लेकिन वहाँ का वातावरण देख, तोडने का साहस नहीं कर सका. तभी मेरे ऊपर एक सूखा पत्ता गिरा. तो क्या ये बुद्ध से मुलाकात का प्रतीक था ? ज्ञान मिला ? हाँ ! बुद्ध के देश में अभी भी कितनी निर्धनता है, कितनी अशिक्षा है, कितनी करुणा है?
कभी "ओलार" कभी "दाबू"
1 वर्ष पहले
ापने ढूँढा तो मिल गया मगर आज कल लोगों के पास समय ही कहाँ है उसे ढूँढने का। इन्सान खुद हीको बुद्ध समझ् बैठा ह शायद अब तो लगता है कि सभी देवी देवता धर्मगुरू और महाँ पुरुष भी इन्सान से डरने लगे हैं। बहुत सुन्दर संस्मरन शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंसुन्दर संस्मरण
जवाब देंहटाएंबढ़िया मुलाकात रही।
जवाब देंहटाएंभइया-दूज पर आपको ढेरों शुभकामनाएँ!
तभी मेरे ऊपर एक सूखा पत्ता गिरा. तो क्या ये बुद्ध से मुलाकात का प्रतीक था ?
जवाब देंहटाएंमन में कोई इच्छा हो तो पूरी हो ही जाती है .. विश्वास गहरा हो तो आप इसे बुद्ध से मिलना कह सकते हैं अन्यथा महज एक संयोग !!
ऐसे लेख संस्कारित करते हैं। सरल रवानी और बहुत हौले से लापरवाह सा कहनाम !
जवाब देंहटाएंइतिहास, वर्तमान परिवेश दृष्टि, सरल दर्शन सब कुछ इतने कम शब्दों में। आप ही की तरह शरद कोकास लिखते हैं। अन्ना भी लिखते थे।
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बोधिवृक्ष का सूखा पत्ता - क्या नहीं लगता कि इस शीर्षक से वृहद लेख आना चाहिए?
बुद्ध को तो 2000 वर्ष पूर्व ही इस देश से देश निकाला दे दिया गया था । बुद्ध की करुणा में यह देश डूबा रहा और बुद्ध के वैज्ञानिक चिंतन को भूल गया । जिस देश ने उसे अपनाया वह आज समृद्ध हो गया है । अब हमारे पास केवल अवशेष हैं और हम उन्हे भी सहेज कर नहीं रख पा रहे हैं ।
जवाब देंहटाएंफिर उस बोधिवृक्ष के नीचे पहुँचे जिसके नीचे बैठकर बुद्ध को ज्ञान मिला. थोडी देर बैठा और ध्यान लगाया. लौटने लगा तो सोचा बोधिवृक्ष का एक पत्ता ले चलूं. लेकिन वहाँ का वातावरण देख, तोडने का साहस नहीं कर सका. तभी मेरे ऊपर एक सूखा पत्ता गिरा. तो क्या ये बुद्ध से मुलाकात का प्रतीक था ? ज्ञान मिला ....
जवाब देंहटाएंपंकज जी ,
इस तरह जी इतिहासिक यात्राएं नसीब वालों को हासिल होती हैं ....और ये पत्ता ....मन की इच्छा पूरी करता महात्मा बुद्ध की देन है ...इसे संभाल कर रखियेगा .....!!