मेरठ, 04.04.2010
यात्रा पर हूँ. आम पर खूब बौर दिख रहा है. इतना कि आम की शानदार फसल की उम्मीद से मुंह में पानी आ रहा है. अमराई से कोयल की कुह कुह सुनाई दे रही है. ये मौसम मुझे बड़ा अच्छा लगता है, थोड़ा सूनापन लिये पर आशा से भरपूर.
लेकिन, गर्मी की आहट तेजी से सुनायी दे रही है. समय से तेज और असर से भी. गेहूं पक गया है और खेतों में जैसे सोना बिखरा है. कहीं कहीं कटाई शुरु हो गयी है. पसीने में लथपथ किसान लगे हैं.
दूर सौंफ भी पक रही है और एक पलाश का पेड़ अकेला खड़ा है. कभी पूरे के पूरे जंगल थे पलाश के इस क्षेत्र में, कितना मनोरम लगता था परिदृश्य.
thinking of my father ऐसे ही
4 वर्ष पहले