सोमवार, 7 जून 2010

साबरमती आश्रम और आई आई एम

अहमदाबाद, 06 जून 2010


अहमदाबाद में हूँ. यूँ तो यहाँ आई आई एम में ट्रैनिंग के लिये आया हूँ, पर अहमदाबाद में इससे भी बड़ा ट्रैनिंग इंस्टीट्यूट मुझे साबरमती आश्रम लगता है. गांधी ने यहीं से सत्य का आग्रह किया और देश को स्वतंत्रता और स्वाबलंबन का मंत्र दिया. खादी से लेकर दांडी यात्रा तक के आंदोलन यहीं जन्मे.  यहीं से गांधीजी ने व्यापार का एक नया मॉडल दिया, ट्रस्टीशिप का मॉडल. इस मॉडल के अनुसार किसी भी व्यापार की संपदा किसी पूंजीपति की नहीं है, वह केवल उसका ट्रस्टी है जो इस संपदा के असली मालिक यानी समाज की ओर से उसकी देखभाल करता है.


आश्रम साबरमती नदी के तट पर है और देश की हर नदी की तरह इसका हाल भी बेहाल है. देखता हूँ, आश्रम में बहुत लोग आते हैं पर अधिकतर पिकनिक की तरह. उबाऊ चित्र प्रदर्शनी है और बिल्लों और पेनों के स्मारकों की दुकान भी है पर गांधी को ढूंढता हूँ , कहीं बकरी को घास खिलाते, सूत कातते या  पेड़ के नीचे वैष्णव जन तो तैने रे कहिये गवाते मिल जायें तो वे नहीं मिलते.