होली आ रही है और ब्रज की होली तो सबसे निराली होती है, क्योंकि स्वयम राधा कृष्ण उतर आते हैं होली का आनंद लेने. उधर गिरिजेश के ब्लाग पर फाग महोत्सव जारी है, सो मैंने भी सोचा ब्रज के होली लोक गीत से ही मनाऊं होली.
नैक उरै आ श्याम
तोपे रंग डारूं
नैक उरै आ...
लाल गुलाल मलूं तेरे मुख सौ
गालन पै गुलचां मारूं
नैक उरै आ...
कौन गांव के कृष्ण कन्हइया
कौन गांव राधा गोरी
नैक उरै आ.....
नंद गांव के कृष्ण कन्हइया
बरसाने की राधा गोरी
नैक उरै आ.....
कोरे कोरे कलश भराये
उनमें केसर घोरी रे
नैक उरै आ.....
नैक उरै आ श्याम
तोपे रंग डारूं
नैक उरै आ...
कौन के हाथ पिचकरा सोहे
कौन के हाथ कमौरी रे
नैक उरै आ ...
कृष्ण के हाथ पिचकरा सोहे
राधा के हाथ कमौरी रे
नैक उरै आ ...
उड़त गुलाल लाल भये बादर
अबिर उड़े भरजोरी रे
नैक उरै आ ...
नैक उरै आ श्याम
तोपे रंग डारूं
नैक उरै आ...
thinking of my father ऐसे ही
3 वर्ष पहले